Sunday, August 24, 2025

दीर्घ आयु और आशीषित जीवन का रहस्य


                                                                                 


  
                                                            दीर्घ आयु और आशीषित जीवन का रहस्य 

निर्गमन 20ः12 पिता,माता का आदर करने से, नीतिवचन 10ः27 -प्रभु का भय मानने से 

भजन संहिता 91ः16 -प्रभु के नाम को जानने से

 आप सभी का स्वागत है हमारी आज की सभा में  यीशु मसीह के नाम आमीन 

हर इंसान चाहता है कि वह दीर्घ आयु और भला और अच्छा जीवन पाए।

उसके लिए लोग दवाइयों, व्यायाम और विशेष आहार को प्रयोग करते है जिससे वे अच्छी सहत पाऐ  सवाल यह है कि क्या आप दीर्घ आयु पाना चाहते है-------

क्या आप स्वस्थ जीवन जीना चाहते है,-------

क्या आप  आशीषित जीवन जीना चाहते है----- तो बोले आमीन 

कैसे कोई दीर्घ आयु और अच्छी सहत और आशीषित यह आशीष जीवन जी सकता है 

उसका रहस्य बाईबल बताती है  

इसलिए आज का विशय है     दीघ आयु और आशीषित जीवन पाने रहस्य 


उदहारणः एक चर्च में पास्टर पादरी ने प्रार्थना करते हुए कहा “हे प्रभु, यहाँ बैठे हर व्यक्ति को लंबा जीवन दे।”सबने जोर से आमीन कहा।

पास्टर ने फिर पूछा “कौन स्वर्ग जाना चाहता है?

सबने हाथ उठाए, सिवाय एक बुजुर्ग महिला के।

पास्टर ने कहाः “बहन, आप स्वर्ग नहीं जाना चाहतीं?”

वह बोली पास्टर जी, अभी नही, मैं लंबा जीवन जीना चाहती हूँ!

आज हम परमेश्वर के वचन से दीर्घ आयु औरआशीषित जीवन के चार रहस्य सीखेंगे, और हर बिंदु को एक छोटी सी कहानी से समझेंगे।


1. अपने पिता और माता का आदर करना 

इफिसियांे 6ः1-2

आपके शरीरिक माता पिता आप आदर करे   आपके आत्मिक माता पिता का आदर करे

आपके पति और पत्नि के माता पिता का आदर करे

क्योकि यह परमेश्वर की आज्ञा है निर्गमन 20ः12

जिससे आप बहुत दिन तक जीवन रहे और भले चंगे रहे 

जब आप जब हम माता-पिता का सम्मान, प्रेम और देखभाल करते हैं, तो परमेश्वर हमें आशीष और दीघ आयु से आषीशित करते है।

उदारहणःएक पोते ने अपने दादाजी से पूछा, “दादाजी, आप इतने लंबे समय तक कैसे जीवित रहे?”दादाजी ने मुस्कुराकर कहा, “क्योंकि मैंने अपने माता-पिता का आदर किया। मैंने उनकी आज्ञा मानी और वृद्धावस्था में उनकी सेवा की। परमेश्वर ने अपना वचन पूरा किया और मुझे लंबा जीवन दिया।”

इससे हम क्या सिखते है जब आप अपने माता-पिता का आदर सिर्फ शिष्टाचार नहीं, बल्कि परमेश्वर की आज्ञा है, और इससे हमें लंबा जीवन मिलता है।


2. परमेश्वर का भय मानना 

नीतिवचन 10ः27, परमेश्वर का भय मानने का क्या अर्थ हर प्रकार के बुराइयों से दुर रहना धर्ममय जीवन आयु बढ़ाता हैः “यहोवा का भय जीवन बढ़ाता है, परन्तु दुष्टों के वर्ष घट जाते हैं।”पाप जीवन को छोटा करता है, पाप परमेश्वर से दुर करता है पाप हमारे जीवन से परमेश्वर की आशीष कहा आशीषो  को खत्म करता है जबकि धर्ममय जीवन शांति और आयु बढ़ाता है।

नीतिवचन 14ः27, परमेश्वर का भय जीवन बढता है,

उदाहरणः एक आदमी ने पादरी से पूछा “लंबी उम्र का राज क्या है?”

पास्टर जी बोलेः “परमेश्वर का भय मानना।”

आदमी हँसकर बोला “अगर मैं अपनी पत्नी से भी डरूँ, तो क्या और लंबा जीऊँगा?

पास्टर जी ने कहा “हाँ, क्योंकि डरते-डरते तुम गलत कामों से दूर रहोगे। और जिससे तुम्हारी आयु बढेगी और आशीषित जीवन जी पाउॅगें

कि क्योंकी  परमेश्वर का भय हमें गलतियों से बचाता है और लंबा जीवन प्रदान करता है।


3. परमेश्वर के वचन पढना और उसमें चलने के द्वारा से 

उदाहरण एक बुजुर्ग रोज बाइबल पढ़ते थे। किसी ने पूछा“आप इतना क्यों पढ़ते हैं?”

बुजुर्ग हँसकर बोलेः “क्योंकि मैं चाहता हूँ जब परमेश्वर मेरा नाम ले, तो मुझे बाईबल पढते हुऐ देखकर कहे, अरे, अभी तो यह मेरा वचन पढ़ रहा है, इसे और पढने दो।

नीतिवचन 3ः1-2,4ः10, हम रोज प्रभु का वचन पढना चाहिए और उसके अनुसार चलना चाहिए,जिससे आपकी आयु बढे और आप अधिक कुषल से रहे, 

 परमेश्वर का वचन जीवन और आयु दोनों बढ़ाता है। भजन संहिता 1ः2-3 कहती हैः

“धन्य है वह मनुष्य... जो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता है... वह उस वृक्ष के समान है जो धाराओं के पास लगाया गया है।”

1राजा 3ः14, व्यवस्था 5ः33, परमेष्वर की आज्ञा मानने से दीर्घ आयु और आषीशित जीवन को हम पाते है उदाहरणः दो वृक्ष: एक गाँव में दो वृक्ष लगाए गए। एक नदी के पास था, जिसकी जड़ें गहरी गईं और वह हर मौसम में हरा-भरा रहा। दूसरा नदी से दूर था, जो केवल बरसात पर निर्भर था। वह जल्दी ही सूख गया। जो परमेश्वर का वचन पढता है और उसके  अनुसार चलता है वह उस नदी के किनारे के पेड के समान होगा जो हमेषा हरा भरा रहता है और दीर्घ आयु तक जीता है।


4. परमेश्वर से प्रेम करने केे द्वारा

व्यवस्थाविवरण 30ः20, जो परमेश्वर से प्रेम करते है वे जीवन पाएगे, भजन संहिता 91ः14-16

जब आप परमेश्वर से प्रेम करते है तो परमेश्वर आपकी आयु को बढाते है 

उदाहरणः 90 साल का भक्त रोज प्रार्थना करता “हे प्रभु, मैं तुझसे प्रेम करता हूँ।”

लोग पूछतेरू “क्या यही तुम्हारी लंबी आयु का राज है?”

वह कहतारू “हाँ, क्योंकि जब तक मैं उससे प्रेम जताता हूँ, वह मुझे धरती पर रखता है। ताकि मै उसकी महिमा और गवाही दे सकु 


5. परमेश्वर की सेवा करने के द्वारा से 

व्यवस्थाविवरण 11ः13-15,निगर्मन 23ः25-26, अय्युब 36ः11, 

उदाहरणः एक चर्च में एक 85 वर्षीय महिला रोज सेवा करती थी कृ कुर्सियाँ लगाना, बच्चों को कहानी सुनाना, बीमारों के लिए प्रार्थना करना।

लोग पूछतेरू “आप इतनी उम्र में भी थकती नहीं?”

वह मुस्कुराकर कहतीरू “मैं परमेश्वरकी सेवा करती हूँ, और वह मुझे नई शक्ति और लंबा जीवन देता है।”

याद रखे:जो लोग परमेश्वर की सेवा करते हैं, वे थकते नहीं, बल्कि उनकी आयु आशीषित होती है।

Friday, August 15, 2025

मध्यस्था कि प्रार्थना मे सामर्थ

                                                    

                                                               मध्यस्था कि प्रार्थना मे सामर्थ

आप सभी का स्वागत है हमारी प्रार्थना सभा मे,

हम परमेश्वर का धन्यवाद करते है कि परमेश्वर ने मौका दिया कि आज हम उपस्थति मे आ सके,हम परमेष्वर का धन्यवाद करते है  कि उसने हमे जीवित रखा क्योकि यह उसका अनुग्रह हे और हमारी प्रार्थना हे उसका अनुग्रह हम सदा बना रहे 

यहा पर जैसे हम इक्टटा हे हम देखेगे की एक साथ मिलकर प्रार्थना करने मे कितनी सामर्थ है तथा दुसरे के लिए जब हम प्रार्थना करते है तो क्या प्रभाव उन पर आ सकता है 

इसलिए आज का विषय  है                                  मध्यस्था की प्रार्थना मे सामर्थ

मध्यस्था क्या होता है

मध्यस्था दो लोगा,देश ,नगर,या समाज के बीच शन्ति और मेल के लिए कोई तीसरा व्यक्ति कार्य करता है उदाहरण के लिए जब दो देश  मे लडाई या कोई मतभेद होते है तो तीसरा देश उन दोनो के बीच शन्ति लाने के लिए मध्यस्था करता है इसी प्रकार से पापी कि प्रार्थना का उतर परमेश्वर नही देता युहन्ना 9ः30 इसलिए एक धर्मी जिसने अपना सम्बन्ध परमेश्वर के साथ अपने पापो कि क्षमा के साथ किया है वह व्यक्ति परमेश्वर से उन लोगो के लिए परमेश्वर कि दया और अनुग्रह मागता है वह उनके पापो की क्षमा मागता है क्योकि बाईबल बताती है आदम के पाप के कारण सभी मानव जाति परमेश्वर से दुर हो गई और सभी मनुष्य पर परमेश्वर का क्रोध ठहरा है इसलिए जरूरी है कि कोई परमेश्वर से मनुष्यो के लिए मध्यस्था करे, वह मध्यस्था केवल वही कर सकता है जिसके पाप क्षमा हो गये है

मध्यस्था वही कर सकता है जिसने यीशु  मसीह को ग्रहण किया है

मध्यस्था वही कर सकता है जो परमेश्वर का संतान है परमेश्वर पर विष्वास करने के द्वारा से,

मध्यस्था वही कर सकता है जो परमेष्वर कि इच्छा के अनुसार चलता है

बाईबल हमे मध्यस्था करने वालो के बारे मे बहुत कुछ बताती है

मध्यस्था करनेवालो लोगो कि आज के समय बहुत ही जरूरत है मध्यस्था करनेवाले लोग कि आज बहुत ही आवश्यकता  है जहा पर मध्यस्था करनेवाले लोग होगे वहा पर परमेश्वर कि सामर्थ,दया,कृपा होगी

और आज परमेश्वर मध्यस्था करनेवाले कि खोज कर रहा है जब मध्यस्था करनेवाले लोग नही होते है वहा पर बिमारी,परेशनिया,और नाश और विनाश आने लगता है यहेजकेल22ः30 परमेश्वर आज भी ऐसे लोगो को ढुढ रहे है ताकि कोई पापी नाश  ना हो क्योकि परमेश्वरपरमेष्वर किसी पापी के मरने से प्रसन्न नही होता यहेजकेल 18ः32 लेकिन यहेजकेल मे लिखा है 22ः31 वहा पर कोई मध्यस्था करनेवाला नही मिला इस कारण से परमेश्वर का क्रोध भडक उठा और परमेश्वर ने उन्हे दण्ड दिया 

यदि हम मध्यस्था कि भुमिका को सही प्रकार से निभायेगे तो हमारे परिवार मे परमेश्वर का अनुग्रह होगा

तो हमारे कलिसिया मे परमेश्वर का सामर्थ होगी

तो हमारे देश मे परमेश्वर की करूणा और दया होगी

हमारी प्रार्थना है हम मध्यस्था करनेवालो लोगो मे गिने जाऐ 

इसलिए आज के विषय  को हम 3 भागो मे बाटेगे!

1. मध्यस्था कि प्रार्थना करनेवाले लोग

2. मध्यस्था कि प्रार्थना करने का उद्वेश्य 

3. मध्यस्था कि प्रार्थना करने वाले कि योग्यता 

1. मध्यस्था कि प्रार्थना करनेवाले लोग

       उत्पति 18

बाईबल मे ऐसे बहुत सारे लोगो का वर्णन करती है जिन्होने मध्यस्था कि प्रार्थना किया तथा यह भी बताती है कि कैसे उन्होने मध्यस्था कि प्रार्थना के द्वारा व्यक्तिगत जीवन मे, नगर मे , देश  मे ,जाति और परिवार मे परमेश्वर कि दया प्राप्त किया मध्यस्था करनेवाला व्यक्ति प्रार्थना मे मल-युद्व करता है जो मध्यस्था करनेवाला करने वाला कर सकता है वह एक प्रचारक नही कर सकता है जहा पर मध्यस्था करनेवाला खडा होता है वहा पर सुसमाचारक नही खडा हो सकता है

मध्यस्था एक गुप्त सेविकाई है 

एक मध्यस्था करनेवाला व्यक्ति परमेश्वर के न्याय को लोगो पर पढने से रोकता है उत्पति मे हम देखते है

1. इब्राहिम सदोम और अमोरा नगर के लिए प्रार्थना करता है जहा पर वह कभी नही गया 

वहा के लिए परमेश्वर कि दया कि प्रार्थना करता है क्योकि परमेष्वर ने इब्राहिम को कहा था कि मै सदोम और अमोरा को नाश  कर दुगा क्योकि वहा के लोग बहुत ही भ्रष्ट हो गये है 

इसी प्रकार पुराने नियम मे हम ऐसे लोगो को देखते है जिन्होने दुसरे लोगो के लिए प्रार्थना किया

2. मुसा ने इस्रालियो के लिए प्रार्थना किया गिनती 14ः13-14,20,  मे परमेष्वर ने मुसा कि प्रार्थना सुनकर उन को क्षमा किया

3. दानिय्य ने इस्राइलियो के लिए प्रार्थना किया ताकि इस्राईली अपने देश  मे वापस जा सके दानिय्य 9ः3,11

4. नेहम्याह ने परमेश्वर से अपने देष के लिए के लिए प्रार्थना किया ;नेहम्याह 1ः4,9

5. आमोस ने अपने लोगो के लिए प्रार्थना कि ताकि परमेश्वर का क्रोध उन मे से हट जाऐ परमेश्वर ने तीन विपती प्रकार के दण्ड देना चाहता था क्योकि इस्राइलियो ने परमेश्वर के विरूध पाप किया था लेकिन आमोस भविष्यवक्ता ने उन लोगो के लिए प्रार्थना किया और परमेश्वर ने तीनो बार उन पर दया किया अमो 7ः1-6

6. नये नियम की कलिसिया ने बहुत बार विभिन्न व्यक्तियो के लिए प्रार्थना किया

जब पतरस जेल मे था उसे छडाने के लिए प्रार्थना किया प्रेरितो के काम 12ः5,12

7. आन्ताकिया कि कलिसिया ने बरनाबास और पौलुस की सेविकाई के लिए प्रार्थना किया

8. सफलता के लिए प्रार्थना किया प्रेरितो के काम  13ः3

मध्यस्था की प्रार्थना पुराने नियम मे बहुत ही महत्वपुर्ण थी

मध्यस्था की प्रार्थना नये नियम मे बहुत ही महत्वपुर्ण थी

इसी प्रकार से मध्यस्था की प्रार्थना आज भीे बहुत महत्वपुर्ण थी

हमारी प्रार्थना परमेश्वर हमे मध्यस्था करनेवाला बनाये 

ताकि हम अपने घर के लिए प्रार्थना करे ताकि हम अपने देश  के लिए प्रार्थना करे

ताकि हम अपने लोगो के लिए प्रार्थना करे


2. मध्यस्था कि प्रार्थना करने का 

पुराने समय के लोगो कि मध्यस्था कि प्रार्थना का उद्देष्य था कि वे परमेश्वर कि दया दुसरे लोगो पर लाते है जिन पर परमेश्वर का दण्ड आया था या आनेवाला था बाईबल मध्यस्था कि प्रार्थना का उद्देष्य को बडे विस्तार से बताती है 

1. पापी लोगो को पुनःपरमेश्वर मे पास लाने के लिए प्रार्थना किया ताकि उन पर परमेश्वर कि कृपा हो

2. व्यक्तिगत लोगो को खतरे से बचाने के लिए मध्यस्था कि प्रार्थना किया    प्रेरितो के काम 12ः5,15

3. अपने लोगो को आशीष  देने के लिए प्रेरितो के काम 122ः6-8

4. मध्यस्था कि प्रार्थना पवित्र आत्मा कि सामर्थ पाने के लिए प्रेरितो के काम 8ः15-17

5. पासबानो,विश्वासी के लिए ताकि परमेश्वर का वचन हियाब से प्रचार कर सके

6. पापो कि क्षमा कि लिए प्रेरितो के काम 7ः60

7. मसीही विश्वासियों  के उन्नति के लिए फिलिप्पियो 1ः9-11

8. पासबानो के लिए 2तीमुथियुस 1ः3-7

9. परमेश्वर कि इच्छा पुथ्वी पर आने के लिए 

10. माता-पिता अपने बच्चो के लिए 


3. मध्यस्था की प्रार्थना करनेवाले लोगो कि योग्यता

यहेजकेल 22ः30

हम देखते है परमेश्वर अपने लोगो के लिए ऐसे व्यक्ति कि खोज करता है जो संसार के लोगो के लिए प्रार्थना कर सके

इसका अर्थ है वह व्यक्ति के पाप क्षमा पाया हो वह परमेश्वर का ज्ञान रखता हो 

उसे परमेश्वर के चरित्र का ज्ञान हो हम देखते है इब्राहिम,मुसा,दानिय्यल ये तीनो एक पवित्र जीवन जी रहे थे ये तीनो को परमेष्वर ज्ञान था ये तीनो ने अपना समय परमेश्वर के साथ अधिक बिताते थे

इसलिए इब्राहिम कहता है उत्पति 18ः23

क्योकि वह जानता था कि परमेश्वर धमियो को नाश नही करता क्योकि इब्राहिम जानता था कि परमेश्वर दयालु है हम देखते है मुसा ने मध्यस्था किया क्योकि वह परमेश्वर कि प्रतिज्ञा को जानता था इसलिए उसने इब्राहिम के साथ कि गई प्रतिज्ञा को याद दिलाया निर्गमन 32ः13-14,गिनती 14ः18-19,20

मुसा परमेश्वर को जानता था कि वह करूणामय और धीरजवन्त परमेश्वर है और वह क्षमा करनेवाला परमेश्वर है 

यदि आप मध्यस्था करनेवाले बनना चाहते है तो आप के पास ये याग्यता होनी चाहिये

1. आपको नया जन्म लेना होगा आपको अपने सारे पापो कि क्षमा मागनी होगी क्योकि युहन्ना 9ः30

2. आप को यीशु मसीह जो परमेश्वर का पुत्र है उस पर विश्वास करना होगा

3. आप को परमेश्वर कि इच्छा पर चलना होगा

4. आप को संसार के जैसे व्यवहार नही करना 

5. आपको प्रार्थना करनेवाला व्यक्ति बनना होगा  

तब आप किसी के लिए भी प्रार्थना करगे तो परमेश्वर आपकी प्रार्थना का उतर देगा 

यदि आप पापो मे है तो आज अपने पापो की क्षमा मागे और यीशु पर विश्वास करे उसे अपना प्रभु जानकर स्वीकार करे 


Saturday, August 9, 2025

घमंड ना करे / Don't be Arrogant

                                                        

                                                                         घमंड ना करे 


आज के विषय को सही से समझने के लिए हम कुछ भागों में  बाँटेग 

घमंड का अर्थ,   घमंड करनेवाले लोग,    घमंड करने के प्रभाव,   घमंड से बचने के नियम


1. घमंड का अर्थ 

परिभाषाः गर्व एक भावना है जिसमें व्यक्ति अपनी उपलब्धियों, गुणों, या संपत्ति के कारण अपने आप पर गर्व महसूस करता है। यह एक सकारात्मक या नकारात्मक भावना हो सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि यह कैसे व्यक्त किया जाता है और इसके पीछे क्या इरादा है।


2. बाईबल में  घमंडी लोगो का उदाहरण 

1. शैतान : यशयाह 14ः12, 12ः14,

2. राजा उज्जियाहः 2इतिहास 26ः5,14-18

3. राजा नबूकदनेस्सरः राजा नबूकदनेस्सर अपनी शक्ति और उपलब्धियों पर गर्व करता था, लेकिन उसे अपनी घमंड के कारण परमेश्वर द्वारा दंडित किया गया (दानिय्येल 4ः28-37)।

4. फरीसीः फरीसी लोग अपने धार्मिक कार्यों और नियमों के पालन पर गर्व करते थे, लेकिन वे अक्सर दूसरों को नीचा दिखाते थे और अपनी धार्मिकता के बारे में घमंड करते थे (लूका 18ः9-14)।


3. घमंड करने के प्रभाव

घमंड से परमेश्वर  को नफरत है नीतिवचन 16ः5, याकुब 4ः6,

घमंडी परमेश्वर से नफरत करता है, भजनसहिंता 10ः4

1. निन्दा का सामना करना

2. दण्ड का सामना करना

3. अलगाव का सामना करना, परमेश्वर  और मनुष्य  से अलग हो जाना 

4. विरोध का समाना करना

5. स्वार्थी का होना:गमण्डी लोग केवल अपने बारे में सोचते है वे दुसरो  के बारे में कुछ नही सोचते है

6. घमंड हमेश  विनाश का सामना करता है,


4. घमंड को दुर करने के तरीके

1. पापो  कि क्षमा मांगे:अयुब 42ः5-6, यशयाह 6ः5 

2. आत्म.चिंतनः अपने विचारों और भावनाओं का आत्म.चिंतन करना।

3. दूसरों की राय को महत्व देना, दूसरों की राय को महत्व देना और आलोचना को स्वीकार करना।

4. सभी भले और अच्छे कामो के लिए परमेश्वर को महिमा देनाः यशयाह  26ः12,उत्पति 41ः16,2कुरि 3ः5

5. विनम्रताः विनम्रता को अपनाना और अपने आप को दूसरों के साथ तुलना न करना।

6. मसीह के बलिदान को याद रखेः गलतियांे 6ः14

7. परमेश्वर  के वचन के अधीन रहनाः य 66ः2, 1तीमुथियुस 6ः3-4

8. हर एक बातो के लिए परमेश्वर  का धन्यवादी होनाः 1थिस्सुलुनीकियो  5ः18, 2शमुएल 7ः18,1कुरि 4ः7

9. अपने आपको आदर करने के से पहले दुसरो को आदर करो, रोमियो 12ः10, फिलि 2ः3,


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                                                                 Don't be Arrogant


To understand today's topic properly, we will divide it into some parts:

Meaning of pride, proud people, effects of pride, rules to avoid pride


1. Meaning of pride

Definition: Pride is an emotion in which a person feels proud of himself because of his achievements, qualities, or possessions. It can be a positive or negative emotion, depending on how it is expressed and the intention behind it.


2. Proud people in the Bible

1. Satan: Isaiah 14:12, 12:14,

2. King Uzziah: 2 Chronicles 26:5,14-18

3. King Nebuchadnezzar: King Nebuchadnezzar was proud of his power and achievements, but he was punished by God because of his pride (Daniel 4:28-37).

4. Pharisees: The Pharisees took pride in their religious practices and observance of rules, but they often looked down on others and boasted about their own righteousness (Luke 18:9-14).


3. Effects of being conceited

God Don't like Proudly people Proverbs 16:5, James 4:6,

Prode people don't like God, Psalm 10:4


1. Effect or punishment on Proud People 

2. Facing punishment

3. Facing isolation, separation from God and man

4. Facing opposition

5. Being selfish: conceited people only think of themselves, they never think of others

6. Proud people always faces destruction,


4. Ways to overcome conceit

1. Ask for forgiveness of sins: Job 42:5-6, Isaiah 6:5

2. Self-reflection: Self-reflection of your thoughts and feelings.

3. Giving importance to the opinion of others, giving importance to the opinion of others and accepting criticism.

4. Give glory to God for all good and noble deeds: Isaiah 26:12, Genesis 41:16, 2 Corinthians 3:5

5. Humility: Practice humility and do not compare yourself with others.

6. Remember the sacrifice of Christ: Galatians 6:14

7. Be obedient to the Word of God: Isaiah 66:2, 1 Timothy 6:3-4

8. Be thankful to God for everything: 1 Thessalonians 5:18, 2 Samuel 7:18, 1 Corinthians 4:7

9. Honor others before honoring yourself: Romans 12:10, Phil. 2:3,





Friday, January 31, 2025

यीशु मसीह के पुनरूत्थान के द्वारा विजय और सामर्थ

                                               

यीशु  मसीह के पुनरूत्थान के द्वारा विजय और सामर्थ

1कुरिन्थियो 15ः1-7,

यीशु  मसीह का पुनरूत्थान बाईबल कि सच्ची घटना है,चाहे लोग विष्वास करे या ना करे,कोई माने या ना माने यह सच्चाई है कि यीषु मसीह मरा,दफनाया गया,मरो मे से जी उठा,वह स्वर्ग गया और वह वापस आने वाला है,यह बाते हर एक विष्वासी जाने और उस के जी उठने के उद्वेष्य के बातो पर विष्वास करना चाहिए,ताकि आप यीषु मसीह के पुनरूत्थान के सामर्थ और विजय को अपने जीवन मे पा सके,

यीषु मसीह का जी उठना बाईबल सिखाता है कि वह इतना षक्तिषाली है जो सभी लोगो के लिए सुसमाचार पर विष्वास करने के द्वारा पापो से आजादी और महान विजय प्रदान करता है,यह चेलो के लिए षुभ सदेष था,यह विष्वासियो के लिए षुभ संेदष है यह आपके लिए षुभसदंेष है 

और जैस आप इस सन्देश को पढते है और प्रार्थना करते है तो यह  सन्देश आपके जीवन के सभी क्षेत्र सामर्थ और विजय लाऐगा,

इसलिए आज के विषय  सही से समझने के लिए हम तीन भागो मे बाटेगे,

1. यीशु मसीह के जी उठने का उद्वेष्य

2. यीशु मसीह के जी उठने का लाभ

3. यीशु के जी उठने के द्वारा सामर्थ और विजय का आन्नद प्राप्त करना


1. यीशु  मसीह के जी उठने का उद्वेष्य

1कुरिन्थियुस 15ः12-25,

यीशु मसीह का जी उठना बहुत ही महत्वपुर्ण है यदि यीषु मसीह जी नही उठता तो हमारा और आपका विश्वास  करना व्यर्थ होता और हमारा प्रचार व्यर्थ ठहरता,इसलिए पौलुस कहता है 1कुरिन्थियो 15ः14

लेकिन धन्यवाद परमेष्वर कि यीषु मसीह को मरो मे से जिलाया,इस कारण हमारा प्रचार व्यथ नही है

इस कारण आपका विश्वास  व्यर्थ नही है,आप सभी पापो से आजाद होते है,और आप कभी नाश  नही होगे हाल्लेलुयाह 

यीशु मसीह का जी उठने का उद्वेष्य क्या है और यीषु मसीह का जी उठना उद्वेष्य क्या दर्षाता है

---यीशु  मसीह का जी उठना सबुत है कि परमेष्वर ने मसीह यीषु का बलिदान पापो के लिए स्वीकार किया है

---यीशु  मसीह का जी उठना हमे यह साबित करता है कि मरने के बाद एक जीवन है युहन्ना 11ः25-26

---यीशु  मसीह का जी उठना दर्षाता है यीशु जीवित है और आज वह हमारे लिए पिता से  निवेदन करता है रोमियो 8ः34

---जो भविष्यवाणी उसके प्रति था वह पुरा हो भजनसहिंता 16ः9-11

----यह उस समय के लोगो के लिए चिन्ह दिया गया कि वे विश्वास  करे मति 12ः38-40.

----यीशु मसीह का जी उठने के द्वारा सभी उन लोगो प्रोत्साहन दिया गया है जो उस पर विष्वास करते है कि हमारा उद्वारकर्ता जीवित है,

---यीशु मसीह का जी उठना सभी विष्वासियो को याद दिलाता है कि जो मसीह मे मर गए है हम उनके लिए निराषा और दुखी ना रहे जैसे यीषु मसीह मर कर दुबारा जी उठा वैसे ही वे भी जी उठेगे जो मसीह मे सो गऐ है 1थिस्सुुलुनिकियो 4ः13-14,

----यीशु मसीह का जी उठना यह मसीहो के विष्वास का आधार है 1कुरिन्थियो 15ः13-14,

----यीशु मसीह का जी उठना यह दर्षाता है विष्वासियो के पास अब सामर्थ है वे कमजोर नही है


2. यीशु  मसीह के जी उठने का लाभ

इफिसियो 2ः1-9,

यीशु  मसीह के जी उठने के द्वारा बहुत से लाभो का हम आन्नद प्राप्त करते है, े 

1. पापो से छुटकारा और उद्वार ----प्रेरितो के काम 17ः30-31,4ः12,

2. जीवन कि शुद्धता  और पवित्रकरण ---इब्रानियो 13ः12,इब्रानियो 12ः14,परमेष्वर का स्वभाव पवित्रता का है,जिसे आदम और हवा ने पाप के कारण खो दिया था उसे वह यीशु  मसीह के मरने और जीवन उठने के द्वारा सभी विष्वासी प्राप्त करते है,

3. मृत्यु,अन्धकार के सभी सामर्थ पर अधिकार और चंगाई कुलुस्सियो 1ः12-14,

4. पवित्र आत्मा का सामर्थ ---- प्रेरितो के काम 1ः8,2ः1-4,कुछ लोग पुछते है कैसे हम इन सभी आषिड्ढो का लाभ प्राप्त कर सकते है

5. अन्नत जीवन कि आषा----

आपको याद रखना है

आपका प्रभु जीवित है - विश्वास  करे

आपका प्रभु जीवित है -- उस पर निभर रहे

आपका प्रभु जीवित है -- आन्नद करे

आपका प्रभु जीवित है --आराम करे,क्योकि वह आपकी समस्याओ को दुर कर सकता है


3.यीशु  के जी उठने के द्वारा सामर्थ ओर विजय का आन्नद प्राप्त करना

कैसे आप यीशु के जी उठने के द्वारा सामर्थ और विजय का आन्नद अपने जीवन मे प्राप्त कर सकते है आपको उस सामर्थ और आन्नद के लिए कुछ करना होगा,

1. आपको वास्तविकता से प्रभु यीषु मसीह का मित्र बनना होगा,पाप को छोडना होगा

2. आपको हमेशा पवित्र जीवन जीना होगा,पवित्र मन,पवित्र जीवन,

इसलिए किसी ने कहा 

watch your thoughts it can become your Action

watch your action it can become your habit

watch your habit it can become your character

watch your character it can become your Life 

इसलिए आप क्या सोचते है ध्यान रखे,

3. आपको सभी बुराई और बुरे लोगो से दुर रहना होगा

4. आपको लगातार पेमेश्वर  के वचन का अध्ययन करना होगा

5. आपको प्रार्थना का जीवन जीना होगा

6. आपको परमेष्वर के प्रतिज्ञा पर विश्वास  करना होगा,

7. आपको परमेष्वर के महिमा करना होगा और दुसरो को प्रभु यीशु मसीह के प्रेम को बताना होगा,

 

 आईये हम अपने स्थानो मे खडे हो जाऐ और प्रार्थना मे आये,और प्रार्थना करे कि वह जी उठने कि सामर्थ आपके पास आये,वह जी उठने का अधिकार आपके पास आये,


Thursday, June 6, 2024

परमेश्वर के अगुवाही में जीवन जीना --- A Life Guided by God


परमेश्वर के  अगुवाही में जीवन जीना

भजनसहिंता 37:23,

आज बहुत से लोग सोचते है कि उनके जीवन का भाग्य उनके हाथो में हैं और वह यह सोचता है कि उसे अपने जीवन को सावधानी से चलाने कि आवश्यकता है,और उसके द्वारा वह फलदायी जीवन जी सकता है, लेकिन हम यह जानें की हम जीवन में सफलता पाने के लिए हमें परमेश्वर की अगुवाही  आवश्यकता है,

जैसे एक खिलाडी को कोच की  आवश्यकता है जैसे एक विधार्थी को अध्यापक की  आवश्यकता है, जैसे एक चेले को गुरू की आवश्यकता है वैसे ही एक सच्चे जन को परमेश्वर  की अगुवाही की  आवश्यकता है,क्योकि जो कोई परमेश्वर की अगुवाही में चलेगा वह अपने जीवन में सफलता पाएगा, क्योकि बिना परमेश्वर के अगुवाही में चलना खतरनाक बन जाता है, यिर्मयाह 10:23, नीतिवचन 14:12,

इसलिए आज के विषय को कुछ भागों में  बाटेगे,

1. परमेश्वर  के अगुवाही पाए हुऐ लोग,

ऐसे कौन कौन से लोग थे जिन्होने परमेश्वर की अगुवाही पाई,

1. अब्राहम,  2. इसाहक,  3 याकूब,  4. तीन ज्योतिषी लोग, 5. मरीयम का पति युसूफ, 6. दाऊद, 7. यहोशापात। ........ अन्य लोग  

 

2. परमेश्वर की प्रतिज्ञा अगुवाही के लिए 

परमेश्वर ने अपने वचन में बहुत जगह अपने लोगो को और अपने खोजियो को  प्रतिज्ञा दिया है कि वह अपने लोगो कि अगुवाही करेगे,भजनसहिंता 32:8,भजनसंहिता 32:8,यशायाह 48:17,

 

3. परमेश्वर की अगुवाही चलने की आज्ञा

नीतिवचन 2:20,नीतिवचन 4:14

 

4. परमेश्वर की अगुवाही पाने के नियम 

हमे परमेश्वर की अगुवाही  पाने के लिए क्या करना होगा,

हमे खराई से चलना होगा, २शमूएल 22:33,

हमे नम्रता के साथ उसके संग चलना होगा, भजनसंहिता 25:9,

हमे परमेश्वर का भय मानना होगा, भजनसंहिता 26:3

हमे परमेश्वर का वचन पढना चाहिए,यहोशु 1:8,

हमे परमेश्वर के अगुवाही के लिए प्रार्थना करना चाहिए,जैसे एज्रा, नहेम्याह, और दाऊद ने पाया, भजनसहिंता 25:4,23:3, भजनसंहिता 27:11

हमे परमेश्वर के आराधना करना चाहिए,जैसे एलिषा ने किया,2राजा 3:13-15

हमे परमेश्वर के उपस्थिति में आना चाहिए सगंति मंे लगातार आना चाहिए,जैसे अब्राहम ने पाया, उत्पति 18:16-20

 

5. परमेश्वर की अगुवाही में  ना चलने के खतरे,

मिर्ययाह 10:23, नीतिवचन 14:12, 16:25,नीतिवचन 15:10

दाऊद जब परमेश्वर की अगुवाही में ना चला तो वह खतरे में गया,

जब उज्जिय्याह परमेश्वर की अगुवाही  में ना चला तो वह खतरे में गया, 2 इतिहास 26 :16 

सिमसोन  जब परमेश्वर की अगुवाही में ना चला तो वह खतरे में गया,

सफिरा और हन्नियाह जब परमेश्वर की अगुवाही में नही चला तो वह खतरे में गए,

ऐसे बहुत से लोग है जब उन्होने परमेश्वर की अगुवाही में नही चले तो उनके जीवन में बहुत बडी बडी पेरशानिया आई,मेरी प्रार्थना है आप प्रभु के अगुवाही यीशु के नाम से आमीन और आमीन,

 

6. परमेश्वर के अगुवाही पर चलने के लाभ और आशीषें 

क्या लाभ होगा जब कोई परमेश्वर की अगुवाही में चले,

1.       प्रभु उसके सभी शत्रुओ  को दबा देगा, भजनसिहंता 81:13-14,

2.       प्रभु उसकी आयु बढाएगा, 1राजा 3:14,

3.       प्रभु उसे पृथ्वी का अधिकारी बना देगा, भजनसंहिता 37:35, और ऐसे बहुत सी आशीष को पायेगा। 

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A Life Guided by God

Psalm 37:23,

Today many people think that the fate of their life is in their hands and they think that they need to lead their life carefully, and by that they can live a fruitful life, but we should know that to get success in life we ​​need the leadership of God,

Just like a player needs a coach, just like a student needs a teacher, just like a disciple needs a Guru, similarly a true person needs the leadership of God, because whoever walks under the leadership of God will get success in his life, because walking without the leadership of God becomes dangerous, Jeremiah 10:23, Proverbs 14:12,

So today's topic will be divided into some parts,

 

1. People who Guided by God,

Who were the people who got the leadership of God,

1. Abraham, 2. Isaac, 3. Jacob, 4. Three astrologers, 5. Joseph, husband of Mary, 6. David, 7. Jehoshaphat. ........ others

 

2. God's promise for His ​ ​Guidance

God has promised many places in His Word to His people and those who seek Him that He will lead His people, Psalm 32:8, Isaiah 48:17,

 

3. God's command to Guide

Proverbs 2:20, Proverbs 4:14

 

4. Principal for Receiving God's ​Guidance

How can we received God’s ​guidance in our life

 We must walk in integrity, 2 Samuel 22:33,

We must walk with Him in humility, Psalm 25:9,

We must fear God, Psalm 26:3

We must read God's Word, Joshua 1:8,

We must pray for God's ​guidance, such as Ezra, Nehemiah, and David found out, Psalm 25:4, 23:3, Psalm 27:11

We must worship God, as Elisha did, 2 Kings 3:13-15

We must come into God's presence and frequent fellowship, as Abraham found, Genesis 18:16-20

 

5. The dangers of not following God's ​guidance

 Jer 10:23, Proverbs 14:12, 16:25, Proverbs 15:10

 

David was in danger when he did not follow God's ​guidance.

Uzziah was in danger when he did not follow God's ​guidance. 2 Chronicles 26:16

Simson was in danger when he did not follow God's ​guidance.

Zephirah and Ananias were in danger when they did not follow God's ​guidance.

Many people like this When they did not follow God's ​guidance. they faced a lot of problems in their lives. I pray that you follow God's ​guidance every time in Jesus Name I Pray Amen and Amen

 

6. Benefits and Blessings of Following God's ​guidance

What are the benefits when someone follows God's leading,

1. The Lord will suppress all his enemies, Psalm 81:13-14,

2. The Lord will extend his life, 1 Kings 3:14,

3. The Lord will make him inheritor of the earth, Psalm 37:35, and he will receive many such blessings.

 

दीर्घ आयु और आशीषित जीवन का रहस्य

                                                                                                                                            ...